Monday 26 September 2011

भगत सिहं क़ी आख़िरी इच्छा जो आजतक पुरी नहीं हुई । 1857 से पहले भारत में अंग्रेजो की पुलिस नहीं थी ।

























What The Bhagat Singh Requested to us at the last Time of his life??? (by Rajiv dixit)







भगत सिहं क़ी आख़िरी इच्छा जो आजतक पुरी नहीं हुई । 1857 से पहले भारत में अंग्रेजो की 


पुलिस नहीं थी ।सेना हुआ करती थे |और अगर आप लोगो को पता हो 10 मई 1857 को भारत में



 क्रांति हो गई थी.




उस समय के जो महान क्रन्तिकारी थे , उनका नाम था. नाना साहब,तात्याँ टोपे, मंगल पांडे आदि. इन्होने 7 लाख 32 हजार युवको की फ़ौज बनाई थी |

और 10 मई 1857 को क्रांति करने का दिन चुना | उन्होंने 1 ही दिन में 2.लाख 50 हजार अंग्रेजो को काट डाला अंग्रेज भाग खड़े हुए |

उसके लगभग 1 साल बाद अंग्रेजो ने भारत के कुछ गद्दार राजाओ के साथ मिल फ़िर से वपिस आने की योजना बनाई. जिसमे

(कैपट्न अमरिंद्र सिहं ज़ो पंजाब के कांग्रेस की सीट पर मुख्य मत्रीं का चुनाव लड़्ते है जो काफ़ी बार मुख्य मत्रीं भी रह चुके हैं.)

उसके दादा पटियाला के नवाब के साथ मिल कर 1857 के क्रंतिकरियो का क़त्ल करवाया और दुबारा भारत में अंग्रेजों को घुसाया गया !

अंग्रेजो ने दुबारा जब भारत में प्रवेश किया तो सोचा की कही दुबारा क्रांति ना हो जाये. इसके लिए उन्होने इंडियन पुलिस एक्ट INDIAN POLICE ACT

और हम पर अत्याचार करने के लिए 34735 चौंतीस हज़ार सात सो पेंतीस कानून बनाये गए जिसमे की पुलिस के हाथ में लाठी और डंडे
हथियार सौंप दिए गए और ये सभी अधिकार उन्हें मिल गए,

की के अंग्रेजो की पुलिस क्रांतिकारियों पर जितने चाहे मर्जी डडें मारे. लठियो से पिटे कोई कुछ नहीं कर सकता और अगर किसी क्रन्तिकारी ने

अपने बचाव के लिये उसकी लाठी पकड़्ने की कोशिश मात्र भी की तो क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलेगा | 

बात उस समय की है की जब इन कानूनों को बढ़ावा देने के लिए SIMON COMMISSION भारत आ रहा था और उसका बहिष्कार करने के लिए





क्रन्तिकारी लाला लाजपत राय जी आन्दोलन कर रहे थे वो शांतिपूर्वक तरीके से आन्दोलन कर रहे थे तभी एक अंग्रेज अधिकारी जिसका नाम J.P. Saunders जे.पी. सॉन्डर्स था उसने लाला जी पर लाठियां

बरसानी शुरू कर दी और जानबूझकर उसने लाला जी के सर पे लाठियां मारी 1 लाठी मारी 2 मारी 3 मारी 4 मारी 5 , 10 ऐसे करते करते उस दुष्ट ने लाला जी पर 14 लाठियां मारी खून बहने लगा ! और उनकी मृत्यु हो गई !


 अब कानून के हिसाब से सॉन्डर्स क़ो सज़ा मिलनी चाहिए इसके लिये भगत सिहं ने पुलिस में शिकायत दर्ज की. मामला अदालत तक गया वहां भगत सिहं ने सफ़ाई दी | 

लाठिया कमर के नीचे तक मारी जा सकती लेकिन लाला जी के सर पर लाठियां क्यों मारी गयी | जिससे उनकी मौत हुई, अदालात ने उनका तर्क नहीं माना  और अदालत ने कहा सॉन्डर्स ने जो किया वो तो कानून में हैं !  उसने कोई कानून नहीं तोड़ा. इसलिये उसको बरी किया जाता है 

और सॉन्डर्स बरी हो गया भगत सिहं को गुस्सा आया | उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी को इन्साफ़ नहीं दिया | 
और सॉन्डर्स को  छोड़ दिया | उसको सज़ा मैं दूंगा और सॉन्डर्स को वहीं पहुंचाउंगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है | और भगत सिहं ने सॉन्डर्स को गोली से उड़ा दिया |

जब भगत सिहं को फ़ासीं होने वाली थी तो उससे कुछ दिन पहले वो लाहौर की जेल में बंद थे | तब कुछ पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे |
तब एक पत्रकार ने भगत सिहं से पुछा आपका देश के युवको के नाम संदेश | तब भगत सिहं कहा की मैं तो फ़ासीं चढ़ रहा हूँ | लीकेन देश के नोजवानो को कहना चाहता हूँ |

जिस इंडियन पुलिस एक्ट INDIAN POLICE ACT  अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानून के कारण लाला जी हत्या हुई | और जिसके कारण मैं फ़ासीं चढ़ रहा हूँ.,
देश नोजावानो को कहना चाहता हूँ. कि आजादी मिलने से पहले पहले किसी भी हालत में इस इंडियन पुलिस एक्ट INDIAN POLICE ACT को खत्म करवा देना |

यही मेरी दिली इच्छा हैं | मेरे देश के प्रति मेरी भावना हैं|

लेकिन आज तक वोही कानून आज तक चल रहे हैं कितने शर्म की बात है. आजादी के 64 साल बाद भी इस इंडियन पुलिस एक्ट INDIAN POLICE ACT को खत्म नहीं किया गया |

आज भी आप अकसर सुनंते हो पुलिस ने लाठी चार्ज किया | कभी किसाने के उपर जो अपनी जमीन माँग रहे होते हैं| कभी ग़रीब लोगो के उपर जो अपना हक़ मांग रहे हैं |

सबसे ताजी घटना तो 4 जून 2011 की काली रात है जहाँ बड़े ही शांतिप्रिय तरीके से स्वामी रामदेव जी विदेशों में जमा काले धन को देश में वापस लाने के लिए और इस भ्रष्ट व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए अपने सहयोगियों के साथ आन्दोलन कर रहे थे |

और बड़े शर्म की बात है की दिल्ली पुलिस ने रात के लगभग 1 बजे सोते हुए मासूम लोगों पर बच्चों पर महिलाओं पर साधुसंतों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी पता नहीं कितने लोगो के हड्डियाँ टुटी और घायल हो गये |

इसी घटना में  बहन  राजबाला जी पुलिस की इस बर्बरता की शिकार हो गई और पुलिस ने उनपर जम कर लाठियां बरसाईं 26 सितम्बर 2011

सोमवार को उनका देहांत हो गया पुलिस की लाठियों का शिकार होकर बहन  राजबाला वेंटिलेटर पर थी और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए

क्या यही है हमारा कानून क्या यही न्याय है ! क्यों ऐसा हुआ 04 जून को ये सब इसलिए हुआ की आज भी अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानून का

इस्तेमाल ये काले अंग्रेज मासूम लोगों पर कर रहे हैं और आज भी इनके हाथों में लाठियां हैं क्योंकि आज भी 1860 में बनाया गया इंडियन पुलिस एक्ट INDIAN POLICE एक्ट आज वैसा का वैसा ही इस देश में चल रहा है !


और ये काले अंग्रेज हम पर अन्याय कर रहे हैं ! और यह केवल 1 कानून नहीं ऐसे पुरे के पुरे   34735 चौंतीस हज़ार सात सो पेंतीस अंग्रेजों के कानून जो अंग्रेजो ने भारत को गुलाम बनाने के लिये बानाये थे| आज भी वैसा ही चल रहा है |

भगत सिहं की आखरी इच्छा आज तक पूरी नहीं हुई | पता नहीं हर साल हम किस मुहं से उसका जन्म दिवस मनाते हैं| पता नहीं किस मुहं से 23 मार्च को उसको श्रध्दाजलि अर्पित करते हैं| जिस क्रूर अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानून के कारण लाला जी की जान गयी|

जिस कानून के कारन भगत सिहं फांसी पर चढ्या गया | और आजादी के 64 साल बाद भी हम उस कानून को मिटा नहीं पाये | बड़े शर्म की बात है हमारे लिए जिन लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे कर हमें आज़ादी दिलाई आज वो ही क्या कहते होंगे की ये मेरी अंतिम इच्छा तक नहीं पूरी कर पाए लानत है भारत के नौजवानों पर जो आज भी अंग्रेजों के गुलाम हुए बेठे हैं ! 

और एक क्रन्तिकारी जिसने हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी और उनके कुछ बहुत याद किये जाने वाले गीत कविता , मेरा रंग दे बसंती चोला और खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है !   क्या आज हमारा देश खतरे में नहीं है क्या, क्या आज हमारे देश को जागना नहीं चाहिए  ????



1997 Bharat ki aajadi ke 50 saal aur congress ke vikas ki kahaniya by Rajiv dixit ji.



























श्री तरुण गुप्ता जी द्वारा 



64 सालों कि गुलामी

 चारों तरफ स्वतंत्रता दिवस मनाने कि तैयारियां चल रही हैं,बहुत लंबे और लुभावने वादे देश के नेता कर रहे हैं |व बहुत जगह पैसे को पानी कि तरह इस दिवस के नाम पर बहाय जा रहा है | इससे पहले कि आप भी इस जश्न को मनाने के लिय व्यस्त हो जाए | जरा सोचे कि स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं या परतंत्रता दिवस | क्या आपने कभी ये सोचा कि क्या देश स्वतंत्र है ? स्वंतंत्रता का सीधा सा अर्थ होता है, स्व यानि खुद का और तंत्र यानि शासन | हमारे भारत देश में शासन तो है लेकिन जरा इस बात पर गहनता से विचार करना कि ये शासन हमारा है या पराया | अब बात साफ़ है कि आज इस देश में जो शासन प्रणाली चल रही है वो हमारी नहीं है , देश उसी सिद्धांत पर चल रहा है जैसे अंग्रेज चलाया करते थे बस परिवर्तन इतना ही हुआ कि पहले अंग्रेज शासन करते थे और अब उसी सिद्धांत पर इस देश के वो लोग राज करते हैं जो शरीर से भारतीय हैं लेकिन मानसिकता से अंग्रेजियत भरी पड़ी है | विषय बहुत लंबा है परन्तु मुख्य रूप से बहुत से ऐसे उदाहरण हमारे सामने है जिनको जानकार व समझकर पूरी प्रमाणिकता से कहा जा सकता है कि भारत में आजादी आई नहीं है |हाँ सही मायेने में हम आजाद हुए ही नहीं हैं |
पूरी दुनिया के आजादी के इतिहास कि मैं बात करूँ तो ये इतिहास रहा है कि दुनिया में जो भी देश गुलाम रहकर , आजाद हुआ है उसने आजाद होने के बाद सबसे पहले जो काम किया वो है उस देश ने अपनी शिक्षा व मातृभाषा को अपनाया है | क्योंकि शिक्षा व्यवस्था व भाषा किसी भी देश के विकास में रीढ़ कि हड्डी का कम करती हैं |सोचने समझने कि जो क्षमता मातृभाषा में विकसित होती है वो विदेशी या अन्य भाषा में उतनी नहीं हो पाती है | हमारे सामने अमरीका का उदाहरण सामने है, कि अमरीका ने जो ऊँचाई पाई है | उसके इतिहास का हम जब अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि २०० साल पहले तक उसका इतना ज्यादा कोई अस्तित्व नहीं था |परन्तु 1776  के बाद अमरीका ने जो ऊंचाई पाई है उसका प्रमुख कारण यही रहा है कि उसने आजाद होते ही अपने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को अपनाया | इसी तरह चीन का उदाहरण हमारे सामने है |1949 में चीन में जो सांस्कृतिक क्रांति हुई जिसका नेता माओ था माओ ने जब चीन को बदला तो सबसे पहले उसने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया | इसी तरह जापान, क्यूबा ,स्पेन ,डेनमार्क व कई अन्य देशो का उदाहरण हमारे सामने हैं |
भारत के संदर्भ में देखे तो यहाँ बिलकुल उल्टा चित्र नजर आता है | 1840 में अंग्रेज अफसर मैकाले ने जो शिक्षा व्यवस्था इस देश में भारतीय संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने के लिय व हम सब को मानसिक गुलाम बनाने के लिय बनाई थी वो आज भी इस देश में चलती है | उच्च शिक्षा का जो पाठ्यक्रम अंग्रेजो ने इस में लागू किया था वो लगभग 140 वर्षों से चल रहा है |
और अफ़सोस और दुःख कि बात तो यह है कि मैकाले ने हमारे इतिहास में जो विकृतियाँ डाली थी वो आज भी इस देश कि भावी पीढ़ी को पढाया जाता है |और इससे भी दुःख कि बात यह कि अंग्रेजो इस देश में जो परीक्षा प्रणाली इस देश में लागू करके गए थे वो उनके देश में नहीं चलती है | इसका मतलब सीधा सा यही है कि अगर वो अच्छी ही होती तो वो खुद भी अपनाते |
एक दो और उदाहरणों से बात स्पष्ट होती है कि भारत देश को लूटने और नागरिको पर अत्याचार कने के उदेश्य से अंग्रेज जो कानून बनाकर इस देश में गए थे वही कानून इस देश में चलते है और उनका दुरूपयोग होता | जिसका परिणाम यह कि हमारे देश कि न्यायपालिका सही न्याय नहीं कर पाती है |मात्र फैसला देने में ही वर्षों लग जाते हैं |1857 कि क्रांति होने के बाद जब अंग्रेजो को दर सताने लगा था कि भारतीय नागरिको को यदि काबू में नहीं किया गया तो वे हमारे शासन को जड़े जल्द ही उखाड़ फैकेंगे | भारतीयों कि आवाज को दबाने के लिय अंग्रेजो ने पुलिस बनाकर एक कानून बनया था जिसका नाम था इंडियन पुलिस एक्ट | इस कानून में साफ़ साफ़ लिखा था कि कोई भी अंग्रेज अधिकारी भारतीय नागरिको पर लाठी चार्ज कर सकता है और भारतीयों को यह अधिकार नहीं होगा कि वो इस इस एक्शन ले सकें | और आज 1947 में अंगेजो के जाने के बाद भी भारत देश में यह कानून चलता है और हालात यह हैं कि जब भी किसान , मजदुर , कारीगर या अन्य भारतीय सरकार से शांति पूर्वक अपने हक कि बात को कहने के लिय कोई आंदोलन या जुलुस करते हैं तो आज भी सरकारें इस कानून कि मदद से हमारे देश में हमारे ही नागरिको पर लाठियां बरसवाती  हैं | क्या हक माँगना गुनाह है ? आब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि असली में आजादी आई है या आज भी भारत परतंत्र है अंग्रेजियत शासन व्यवस्था का |
अंग्रेजो ने भारतियों को लूटने के मकसद से जो टैक्स प्रणाली भारत में चलाई थी वाही आज इस देश में चलती है |इनकम टैक्स , सेल टैक्स , टोलटैक्स, रोड टैक्स इस तरह से लगभग २३ प्रकार के टैक्स इस देश में लगाये थे उनके हालत यह हैं कि आज भारत में 64 प्रकार के टैक्स लगते है और दुःख कि बात यह कि देश के 84 करोड लोग मात्र २० रूपये पर अपनी जिंदगी गुजारते हैं और उनमे से लगभग ८० लाख लोग दो वक्त के खाने को मोहताज हैं|अब आप खुद फैसला किजीय कि भारत में आजादी आई है या 64 सालो कि गुलामी को झेला है |
इस तरह से बहुत से कानून जैसे इंडियन फोरेस्ट एक्ट , इंडियन एक्युजिशन एक्ट(भूमि अधिग्रहण कानून ) व अन्य हैं जो उसी तर्ज पर चलते हैं जैसे अंग्रेज बनाकर गए थे  अब कुछ बात अर्थ व्यवस्था कि करें तो हालत यह हैं कि अंग्रेजो कि लगभग 200 से ज्यादा सालो कि गुलामी सहन करने के बाद भी 1947-48 में जब अंग्रेज इस देश से चले गए थे तब भारत पर १ पैसे का भी कर्ज नहीं था परन्तु आज हालत यह हैं कि भारत का प्रत्येक नागरिक लगभग 18 हजार से भी ज्यादा रूपये का कर्ज दार हो गया है जो कि सरकारे हमसे टैक्स के माध्यम से हर साल वसूलती हैं |
भारत जब 1947 में आजाद हुआ था तब आयत निर्यात का घाटा २ करोड का था आज वही घाटा 17 हजार करोड से भी ज्यादा का हो गया है तो हम कैसे कह दें कि भारत आजाद है |
जो गेहूं देश के नागरिकों को 5 से 6 रूपये किलो मिल जाया करता था वही अनाज आज 18 से २० रूपये किलो मिलता है और देश के किसानो पर कर्ज लगातार बढ़ रहा है तो ये विकास है या विनाश ये फैसला आप खुद कर सकते हैं |

हालाँकि विषय बहुत लंबा है बहुत सी ऐसी और बाते हैं जो ये साबित करती हैं कि भारत के नागरिको पर वही शासन व्यवस्था चलती है जो अंग्रेजो ने बनाई थी बस फर्क इतना से सा है कि पहले गोरे अंग्रेज शासन करते थे और आज काले अंग्रेज करते हैं | देशवासियों अगर आप सच में इस देश को व अपने आप को आजाद करना चाहते हो तो आओ सब मिलकर व्यवस्था परिवर्तन में सहयोग दो और बदल दो इन गुलामी कि मानसिकता व शासन प्रणाली को |एक बात  हमेशा यही याद रखना परिवर्तन करने के लिय समय कि नहीं संकल्प कि आवश्यकता होती है |








2 comments:

  1. खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ! क्या आज हमारा देश खतरे में नहीं है क्या, क्या आज हमारे देश को जागना नहीं चाहिए ????

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  2. rameshwar ji ..yahi aag hume jalti rakhani hai ... bhagatsinh ji ka balidaan vyarth nahi jane dena hai ...

    jai ho

    jai bhagat sinh

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